परंपरागत खेती-बाड़ी का कायाकल्पः डिजिटल नवाचार की भूमिका

कोलकाता में पहली मैट्रो परियोजना के बाद भारत को लगभग दो दशक का समय लगा जब दूसरी मैट्रो रेल परियोजना सन् 2002 में दिल्ली में शुरू हुई. लेकिन उसके बाद भारत के विभिन्न शहरों में मैट्रो रेल परियोजनाओं की झड़ी लग गई. पिछले एक दशक में भारत के तेरह से अधिक शहरों में मैट्रो रेल प्रणालियों को मंजूरी प्रदान की गई और कई राज्य ऐसे हैं जो केंद्र सरकार से अभी-भी मैट्रो रेल परियोजनाओं की मंजूरी मिलने की बाट जोह रहे हैं.
समावेशी विकास या “गरीबोन्मुखी” विकास भारत के विकास संबंधी विमर्श का एक महत्वपूर्ण विचारबिंदु बन गया है. इसे व्यापक समर्थन मिला है, क्योंकि इस विकास में दो सबसे महत्वपूर्ण बातें शामिल हैं: प्रगतिवादी (या अधिक समतावादी) वितरण सहित आमदनी में वृद्धि. इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले बीसवीं सदी के आरंभ में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यूपीए-1 सरकार के कार्यकाल में किया गया था. उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में एनडीए सरकार ने इसे आगे बढ़ाया, लेकिन क्या ‘समावेशी विकास’ ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे से कहीं आगे की बात है?