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भारत का नागरिक ड्रोन उद्योगः ड्रोन विनियमन के लिए सिविल सोसायटी की व्यापक भूमिका आवश्यक

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03/12/2018
शशांक श्रीनिवासन

7 अक्तूबर, 2014 को लगता है कि मानवरहित हवाई वाहन (अर्थात् UAVs; जिसे आम भाषा में ड्रोन कहा जाता है) के निर्माण और संचालन के क्षेत्र में भारत के विश्व-नेता बनने की आकांक्षाओं पर रातों-रात तुषारापात हो गया. भारत में नागरिक उड्डयन के विनियामक महानिदेशक, नागरिक उड्डयन (DGCA) ने एक संक्षिप्त सार्वजनिक सूचना जारी करके हर प्रकार की गैर-सरकारी संस्था या व्यक्ति को किसी भी प्रयोजन के लिए संरक्षा और सुरक्षा के कारणों से UAVs अर्थात् ड्रोन को उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया. सौभाग्यवश भारत का ड्रोन उद्योग अभी शैशव अवस्था में ही है. हालाँकि इस सूचना में कड़े अनुपालन की माँग तो की गई, लेकिन किसी ऐसे तंत्र या सरकारी एजेंसी को चिह्नांकित नहीं किया गया, जिसे इसके अनुपालन का दायित्व सौंपा गया हो.

इसके परिणामस्वरूप ड्रोन के व्यापक उपयोग पर प्रतिबंध तो लग गया, लेकिन विनियामक भ्रम के कारण अविकसित उद्योग बनने के लिए पर्याप्त गुंजाइश भी पैदा हो गई. पिछले चार वर्षों में फ़ार्मों के मानचित्रण, किसी कार्यक्रम की वीडियोग्राफ़ी और रियल इस्टेट की मार्केटिंग जैसे मामूली कामों के लिए किराये पर लेने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर ड्रोन के मालिक-संचालकों से संपर्क करना अपेक्षाकृत आसान हो गया. व्यक्तिगत स्तर पर ऑपरेट करने वाले ड्रोन के ये मालिक-संचालक विभिन्न प्रकार के अवैध कारोबार करने वाले इलैक्ट्रॉनिक बाज़ारों से ड्रोन खरीद लेते हैं या फिर अपने व्यक्तिगत सामान के साथ ही इनका आयात करके अपने दोस्तों या परिवारजनों को उपलब्ध करा देते हैं या ज़रूरी कलपुर्जों को खरीदकर अपने ही ड्रोन बना लेते हैं. कुछ कारोबारी लोग सरकार की नज़र बचाकर भारत में ड्रोन का निर्माण करने और उसे ऑपरेट करने लिए आवश्यक जटिल से जटिल रिश्ते बनाने में और मुख्यतः सिनेमैटोग्राफ़ी, कृषि और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों के लिए उत्पाद और सेवाएँ प्रदान करने में भी कामयाब हो जाते हैं. लेकिन इन उत्पादों और सेवाओं को विधिसंगत बनाने के लिए आवश्यक गारंटी के विनियमों के बिना इस कारोबार के लिए निवेश जुटाना बहुत कठिन हो गया है, जिसके कारण इसके विकास की गति धीमी हो गई है. यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत में कोई स्वदेशी ड्रोन निर्माता नहीं है जो डीजेआई, पैरट और यूनीक जैसे ड्रोन उद्योग के दिग्गजों के सामने वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो.

अगले कुछ सप्ताहों में हालात बदल सकते हैं. 1 दिसंबर, 2018 को सुदूर चालित नागरिक विमान प्रणालियों के संचालन के लिए भारत के नागरिक उड्डयन के नियमों का पहला संस्करण, जिसे ड्रोन विनियम 1.0 भी कहा जाता है, लागू किया गया. ये विनियम अनेक अज्ञात निजी बैठकों और दो सार्वजनिक बैठकों में विचार-विमर्श से उभरकर सामने आए हैं और इसके प्रकाशन से पूर्व कई सरकारी एजेंसियों ने इसे अनुमोदित किया है.

इस आरंभिक संस्करण के कारण गैर-सरकारी एजेंसियाँ, संगठन और व्यक्ति निर्धारित सरकारी एजेंसियों से विशिष्ट कार्यों के लिए अनुमति प्राप्त करके कानूनी ढंग से UAVs का उपयोग कर सकते हैं. ड्रोन विनियम 1.0 के अंतर्गत ड्रोनों के निर्माण के लिए न्यूनतम मानक निर्धारित किये गए हैं, भले ही वे भारत में निर्मित हों या विदेश में. इसके अंतर्गत ड्रोन ऑपरेटरों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण संबंधी सूचनाएँ और विशिष्ट प्रकार के ड्रोन ऑपरेशनों के लिए विभिन्न प्रकार के अनुमति-पत्र भी शामिल हैं. विनियमों के इस संस्करण में बाज़ार में होने वाली कुछ संभावित गतिविधियों को फ़िलहाल अनुमति नहीं दी गई है. उदाहरण के लिए, जहाँ एक ओर कार्यमूलक ड्रोन-आधारित डिलीवरी को ड्रोन उद्योग के लिए विकास का मुख्य क्षेत्र माना गया है, क्योंकि इससे ऑनलाइन फुटकर और स्वास्थ्य-चर्या पर गहरा असर पड़ेगा और यही अनुसंधान व विकास का केंद्रबिंदु भी है, वहीं दूसरी ओर फ़िलहाल इसे अनुमति प्रदान नहीं की गई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इसके लिए ऑपरेटर को दृश्य-रेखा-दृष्टि (BVLOS) संचालन से परे ऑपरेट करने की आवश्यकता होती है और ड्रोन के लिए उड़ान भरते समय पेलोड जारी करने के लिए, दोनों को ड्रोन विनियम 1.0 के अंतर्गत स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया गया है. हालाँकि, आशा की जाती है कि ड्रोन विनियमन के बाद के संस्करणों में उद्योग के सामूहिक अनुभव को ध्यान में रखते हुए अनुमत ऑपरेशन के दायरे को बढ़ाया जाएगा, इस प्रकार अंततः वर्तमान में प्रतिबंधित ड्रोन-आधारित डिलीवरी और ड्रोन के अन्य अनुप्रयोगों को अनुमति प्रदान कर दी जाएगी. डीजीसीए ने पूरे देश में परीक्षणों के लिए कुछ खास ठिकानों को नामित किया है, जहाँ ड्रोन निर्माता और ऑपरेटर संरक्षा और सुरक्षा के वातावरण में इन पर नये-नये प्रयोग कर सकेंगे. फिर भी यह सवाल बना रहता है कि ड्रोन विनियम ड्रोन उद्योग के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकेंगे या नहीं.

ड्रोन विनियमों में प्राथमिक नवोन्मेष है, डिजिटल स्काई प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग. यह एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ कोई भी ड्रोन ऑपरेटर ऑपरेशन करने के लिए आवश्यक सभी दस्तावेज़ प्राप्त कर सकता है, जिनमें नामित प्रवर्तन प्रणाली के भाग के रूप में अनुमति नहीं, टेकऑफ़ नहीं (NPNT) जैसी ऑपरेशन से पहले की अंतिम उड़ान की अनुमति भी शामिल है. यह एक महत्वाकांक्षी प्रणाली है, जिसमें अनेक मूविंग कलपुर्जे हैं. बस यह देखना बाकी है कि प्रैक्टिस में यह कितना कारगर होगा.

कार्यान्वयन से संबंधित तकनीकी मुद्दों के अलावा, एक सामाजिक मुद्दा यह है कि मौजूदा विनियम ड्रोन उद्योग के लिए पूरी तरह से समावेशी नहीं है. ड्रोन के अनेक अनुप्रयोग भारत की ग्रामीण आबादी की बहुत-सी ज़रूरतों के लिए बेहद उपयोगी हैं. उदाहरण के लिए, खेती-बाड़ी से जुड़े समुदाय सहकारी रूप में ड्रोन की मिल्कियत हासिल कर सकते हैं और वनस्पति संबंधी तनाव को अंकित करने, जंगली जानवरों द्वारा फसल के नुक्सान को रोकने और उर्वरकों और कीटनाशकों के सही छिड़काव के संचालन के लिए ड्रोन को ऑपरेट कर सकते हैं. मौजूदा विनियमों के अंतर्गत ड्रोन उड़ाने के लिए आवश्यक अनुमति प्राप्त करने के लिए जो प्रक्रिया और शुल्क निर्धारित किया गया है, उसके कारण जिन लोगों को ड्रोन की सबसे अधिक आवश्यकता है, वे बिना कंपनी के ड्रोन को ऑपरेट नहीं कर पाएँगे और इससे निश्चय ही ऐसे ऑपरेशन की लागत बहुत बढ़ जाएगी. भारत के गैर-सरकारी संगठनों और ग्रामीण समुदायों की तुलना में, स्टार्ट-अप और कॉर्पोरेशन, ड्रोन विनियम 1.0 को अधिक कुशलता से नेविगेट कर सकते हैं. इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि ड्रोन विनियमों के भावी संस्करणों को तदनुसार संशोधित किया जाए.

अब यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अपने नागरिक हवाई क्षेत्र में ड्रोन को शामिल करने और ड्रोन के अनुप्रयोगों को अपनी सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा बनाने के लिए पूरी तरह तैयार है. चार साल पहले ही यह स्पष्ट हो गया था कि ड्रोन ने भारत में अपनी जगह बना ली है. हालाँकि भारत में अभी-भी बहुत-से ऐसे लोग होंगे, जिन्होंने हवा में उड़ते हुए रोबोट को नहीं देखा होगा और हो सकता है कि अगले पाँच साल तक भी शायद वे इसे नहीं देख पाएँ. देश के भीतर कानूनी रूप से ड्रोन के संचालन के लिए इसकी श्रृंखला का विस्तार करना होगा और इसकी पहुँच राजधानी के लोगों तक ही सीमित नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि इससे भारतीय समाज की मौजूदा असमानताओं में और भी इजाफ़ा होगा. इसलिए यह आवश्यक है कि भारतीय ड्रोन विनियमों के भावी संस्करणों के निर्माण की प्रक्रिया में सिविल सोसायटी और इसका समर्थन करने वाले ड्रोन उद्योग के बाहर के अधिकाधिक प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि ड्रोन का व्यापक उपयोग देश की बड़ी आबादी की भलाई के लिए किया जा सके.

शशांक श्रीनिवासन वन्यजीवन प्रौद्योगिकी के संस्थापक हैं. यह एक ऐसी परामर्श सेवा है जो वन्यजीवन और पर्यावरण के संरक्षण के लिए संबंधित संस्थाओं को प्रौद्योगिकी को समझने, उसे उपलब्ध कराने और उसका उपयोग करने के लिए परामर्श देती है. वह स्वयं अनुभवी ड्रोन पायलट हैं और कैम्ब्रिज विवि से संरक्षण नेतृत्व कार्यक्रम के अंतर्गत एमफ़िल के स्नातक हैं.

 

हिंदीअनुवादःविजयकुमारमल्होत्रा, पूर्वनिदेशक(राजभाषा), रेलमंत्रालय, भारतसरकार<malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919.