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आंतरिक प्रवासन के विरुद्ध संघर्ष

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11/02/2019
रिखिल आर. भावनानी & बेथानी लेसिना

पश्चिम में ब्रैक्सिट और अमरीका में डोनल्ड ट्रम्प और हंगरी के विक्टर ऑर्बन जैसे दक्षिणपंथी लोकप्रिय नेताओं के उदय का मुख्य कारण वैश्वीकरण को माना जाता है. खास तौर पर बहुत-से लोग तो यह तर्क भी देते हैं कि विशेष प्रकार के वैश्वीकरण से उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन पर लगाम न लगने के कारण ही “भूमिपुत्र अर्थात् मूल निवासी” जैसे संघर्षों ने जन्म लिया है. विकासशील देश तो इस प्रकार के संघर्षों के पहले से ही आदी रहे हैं, लेकिन विकासशील देशों में इस प्रकार के संघर्ष अधिकांशतः अंतर्राष्ट्रीय नहीं, बल्कि घरेलू प्रवासन के कारण होते हैं. भारत में ऐसे संघर्षों के प्रमुख उदाहरण हैं, मुंबई और असम, जहाँ “ भूमिपुत्रों अर्थात् मूल निवासियों” के नाम से होने वाली राजनीति के कारण ही ऐसे संघर्ष होते रहे हैं.

हमने अपनी नई पुस्तक Nativism and Economic Integration across the Developing World में उन तमाम संघर्षों का उल्लेख किया है, जो विकासशील देशों की दुनिया में घरेलू प्रवासियों के विरुद्ध होते हैं. विकासशील देशों की दुनिया के इन संघर्षों में आंतरिक या घरेलू प्रवासन की वृद्धि के साथ-साथ आर्थिक विकास और एकीकरण के मुददे भी जुड़ जाते हैं. इस प्रकार के प्रवासन के कारण मानव संसाधनों के मूल्य में सर्वाधिक वृद्धि होती है. साथ ही प्रवासन और प्राकृतिक आबादी में वृद्धि के कारण आर्थिक प्रतिस्पर्धा भी बढ़ जाती है और उन तमाम स्थानों के संसाधनों में भी वृद्धि होती है, जहाँ आकर प्रवासी ठहर जाते हैं. मुंबई जैसे स्थानों पर “मूल” निवासियों ने अक्सर इस प्रकार की गतिविधियों के विरुद्ध संघर्ष किया है. मुख्यतः प्रवासन के कारण ही उन तमाम स्थानों पर धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों की राजनीति उस समय सक्रिय हो जाती है जब वहाँ स्थानीय स्तर पर चुनाव होते हैं और राजनेताओं को मौका मिलता है कि वे बाहरी लोगों के मुकाबले “स्थानीय लोगों” के विशेषाधिकारों को परिभाषित करें. विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा समर्थित राजनीतिक विकेंद्रीकरण के कारण उप-राष्ट्रीय शासन की नई व्यवस्था को बल मिलता है और धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों की राजनीति करने वाले लोग इसे आसानी से हथिया लेते हैं.

कुछ समय पहले तक विशेषज्ञों के पास घरेलू प्रवासन के व्यवस्थित आँकड़े नहीं थे. हालाँकि यह काम बहुत कठिन था, फिर भी ऑस्ट्रेलिया के एक विशेषज्ञ-दल ने 21 विकासशील देशों से “प्रवासन के मैट्रिक्स” संकलित कर लिये हैं. हमने इन आँकड़ों के आधार पर आंतरिक प्रवासन और धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों के तंत्र के विभिन्न रूपों के आपसी संबंधों की छानबीन की है. जैसा कि हमने अपनी पुस्तक में बताया है कि आंतरिक प्रवासन का संबंध लैटिन अमरीका के उन तमाम “देशी दलों” से है, जिनका गठन देशी समुदायों की, खास तौर पर, भूमि संबंधी माँगों को पूरा करने के लिए किया गया था. चित्र 1 में दर्शाया गया है कि 21 देशों के 526 इलाकों में हुए घरेलू दंगे आंतरिक प्रवासन और घरेलू दंगों से आपस में मज़बूती से जुड़े हुए थे. अगर हम अलग-अलग देशों के आँकड़ों पर नज़र दौड़ाएँ तो पाएँगे कि 21 में से 18 देशों में हुए दंगे निश्चित रूप से आंतरिक प्रवासन से जुड़े हुए थे (शेष दो देशों में दंगे हुए ही नहीं. सेनेगल में प्रवासन और दंगों के बीच बहुत कम संबंध थे.)

चित्र 1. अफ्रीका और दक्षिण अफ्रीका, और दक्षिण पूर्व एशिया के उप-राष्ट्रीय इलाकों में हुए दंगों और आंतरिक प्रवासन का स्कैटरप्लॉट सबसे अधिक उपयुक्त है. नोटः यह चित्र भावनानी और लेसिना (2018) की पुस्तक के पृष्ठ 58 से लिया गया है. ये आँकड़े एशिया (कम्बोडिया, भारत, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम), उत्तर अफ्रीका (मिस्र, मोरक्को और ट्यूनीशिया) और उप-सहारा अफ्रीका (बुर्किना फ़ासो, कैमरून, घाना,गिनी, केन्या, मलावी,माली और जाम्बिया) से लिये गये हैं.दंगों के आँकड़े ACLED डेटाबेस से और प्रवासन के आँकड़े IMAGE डेटाबेस से लिये गये हैं.

प्रवासन और धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों के तंत्र के प्रभावों की छानबीन के प्रयासों में दो तरह की खास समस्याएँ सामने आईं. पहली समस्या का सामना करते हुए सामाजिक-आर्थिक अवसरों जैसी कुछ ऐसे मुद्दे सामने आए, जिनके कारण प्रवासन और धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों के स्थान जैसी दोनों ही बातों का पता लगाना मुश्किल था. दूसरी समस्या ऐसी थी जिससे दोनों का ही एक-दूसरे पर प्रभाव पड़ सकता था. न केवल प्रवासन से धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों का तंत्र मज़बूत होता था, बल्कि धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों के तंत्र से प्रवासन के स्वरूप पर भी असर पड़ने की संभावना थी. इन समस्याओं को समझने के लिए हमने अपना ध्यान भारत में प्राकृतिक विपदाओं के कारण हुए प्रवासन पर केंद्रित रखा. बाढ़ और सूखे के कारण अचानक प्रवासन को बल मिल जाता है. नियोजित प्रवासन की तुलना में, बाढ़ और सूखे के कारण हुए प्रवासन का प्रवासी इलाकों की विशेषताओं के “प्रभावी” तत्वों से अधिक सह-संबंध नहीं होता.

उदाहरण के लिए आंतरिक प्रवासन का संबंध आम तौर पर प्रवास-विरोधी राजनीति के उदय से होता है, क्योंकि ऐसी पार्टियाँ धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों की भावनाओं को उभारती हैं या फिर ऐसी भावनाओं को उभारने के लिए नई पार्टियाँ बन जाती हैं. महाराष्ट्र में घरेलू प्रवासन के कारण ही शिवसेना का उदय हुआ. इसी शिवसेना ने सत्तर के दशक तक दक्षिण भारतीय प्रवासियों का और अस्सी और नब्बे के दशक में मुसलमानों का और उसके बाद उत्तर भारतीयों का, विशेषकर बिहारियों का विरोध किया. हमने पाया है कि जब भी प्राकृतिक विपदाओं के कारण महाराष्ट्र के कुछ ज़िलों में प्रवासियों का रेला आया तो संभावना यही रही कि ये ज़िले आगामी चुनावों में शिव सेना को समर्थन दे सकते हैं.

भारत की स्थानीय सरकारें भी तथाकथित धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों का समर्थन करती हैं. इसके कारण ही घरेलू प्रवासियों के विरुद्ध भेद-भाव होता है. राज्य सरकारें कुछ बाहरी प्रवासियों को भाड़े पर ले लेती हैं. भारत सरकार ने नब्बे के दशक के पूर्वार्ध में बड़े पैमाने पर विकेंद्रीकरण संबंधी सुधार लागू किये थे, जिसके कारण रातों-रात 200,000 से अधिक गाँवों, तालुकों और ज़िला-स्तर पर उप-राष्ट्रीय सरकारों का गठन हो गया था. चूँकि प्रतियोगी चुनाव तो हर स्तर पर होते हैं, राजनेता अपने चुनाव क्षेत्रों के पोषण के लिए और उन्हें परिभाषित करने के लिए भारी मात्रा में चुनावी प्रोत्साहन देते हैं. राज्य सरकारों ने विकेंद्रीकरण संबंधी सुधार लागू करने के बाद कुछ घरेलू प्रवासियों को भी भाड़े पर ले लिया है.

आंतरिक प्रवासन आर्थिक विकास के सबसे सुनिश्चित मार्गों में से एक है. चूँकि ऐसे लोगों का उप-राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार आवागमन होता रहता है, इसलिए वे आवागमन की आज़ादी के लिए और अपनी सुविधाओं में सुधार लाने के लिए अपने अधिकारों का उपयोग किया करते हैं, लेकिन प्रवासियों के साथ किये गये वायदों को पूरा करने में धरती-पुत्रों अर्थात् मूल निवासियों का तंत्र बाधक बन जाता है. तो हम प्रवासन के विरुद्ध होने वाले संघर्ष को कम करते हुए प्रवासियों के साथ किये गये वायदे को बेहतर ढंग से कैसे निभा सकते हैं? केंद्र सरकारें प्रवासन को कम करने के लिए उससे प्रभावित इलाकों में संसाधनों का पुनर्वितरण कर सकते हैं ताकि भारी मात्रा में आने वाले प्रवासियों से निबटने के लिए उन क्षेत्रों की भी मदद की जा सके, जहाँ से ये प्रवासी आते हैं. अन्य विशेषज्ञों की तरह हमने भी पाया है कि भारत सरकार उन राज्यों की उदारता से मदद करती है, जहाँ प्रधानमंत्री की सहयोगी सरकारें हैं. आशा है कि नई दिल्ली की सरकार अपने गठबंधन वाले उन तमाम राज्यों में आंतरिक प्रवासन की चुनौतियों से निबटने के लिए हर संभव कदम उठाएगी, जिनके बल पर वे सत्ता में बने हुए हैं.

रिखिल आर. भावनानी विस्कॉन्सिन-मैडिसन विवि के राजनीति-विज्ञान विभाग में सह-प्रोफ़ेसर हैं

बेथानी लेसिना, रोचेस्टर विश्वविद्यालय के राजनीति-विज्ञान विभाग में सह-प्रोफ़ेसर हैं. यह लेख उनकी हाल ही में प्रकाशित निम्नलिखित पुस्तक पर आधारित है: Nativism and Economic Integration Across the Developing World: Collision and Accommodation. (Cambridge University Press, 2018, Cambridge Elements: Political Economy series, ed. David Stasavage).

 

हिंदी अनुवादः विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व निदेशक (राजभाषा), रेल मंत्रालय, भारत सरकार <malhotravk@gmail.com> / मोबाइल : 91+9910029919